मत बांटो इंसान को कविता
मंदिर मस्जिद गिरजाघर ने
बांट लिया भगवान को।
धरती बांटी सागर बांटा
मत बांटो इंसान को।।
अभी राह तो शुरू हुई है
मंजिल बैठी दूर है।
उजाला महलों में बंदी,
हर दीपक मजबूर है।।
अभी भी हरी हरी धरती है,
ऊपर नील बिहान है।
पर ना प्यार हो तो सूना,
जलता रेगिस्तान है।।
मिलता न सूरज का संदेश,
हर घाटी मैदान को।
धरती बांटी सागर बांटा,
मत बांटो इंसान को।।
अभी प्यार का जल देना है,
हर प्यासी चट्टान को।
धरती बांटी सागर बांटा,
मत बांटो इंसान को।।
साथ उठे सब तो पहरा हो,
सूरज के हर द्वार पर।
हर उदास आंगन का हक हो,
खिलती हुई बहार पर।।
रौंद ना पाएगा फिर कोई,
मौसम की मुस्कान को।
धरती बांटी सागर बांटा,
मत बांटो इंसान को।।
मत बांटो इंसान को कविता आपको कैसी लगी।